भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर का मुद्दा भारत की आजादी के समय से ही चर्चा में रहा है. ब्रिटिश शासन की समाप्ति के साथ ही जम्मू एवं कश्मीर राज्य भी 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ था. इसके बाद घटे घटना क्रम में कश्मीर के महाराजा हरीसिंह ने जवाहरलाल नेहरु के साथ 26 अक्टूबर,1947 को कश्मीर विलय का समझौता किया था. इस समझौते के तहत 3 विषयों; रक्षा, विदेशी मामले और संचार को भारत के हवाले कर दिया गया था.जानिये पैलेट गन क्या होती है और कितनी खतरनाक होती है?भारत ने अपने संविधान में अनुच्छेद 370 और 35A के जरिये कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया हुआ है. लेकिन कश्मीर के अलगाववादी गुट कश्मीर की आजादी और उसे पाकिस्तान में शामिल करने की मांग कर रहे हैं. लेकिन भारत सरकार इस मांग को मान नहीं रही है. यही कारण है कि कश्मीर में सेना और वहां के स्थानीय लोगों के बीच झड़पें होतीं रहतीं हैं. सेना इस विद्रोह को दबाने के लिए आंसू गैस, मिर्ची बम, वॉटर कैनन, पेपर स्प्रे, टीजर गैस और पैलेट गन का इस्तेमाल करती है. इस लेख में हम पैलेट गन में इस्तेमाल होने वाली गोली और उसके प्रभाव के बारे में बात करेंगे.
शुरुआत में जब कश्मीर में उपद्रव होते थे तो सेना आंसू गैस का इस्तेमाल करती थी लेकिन भीड़ ने इसका तोड़ निकाल लिया है अब जैसे ही सेना आंसू गैस का प्रयोग करती है तो भीड़ उस गोले पर गीला बोरा (wet sack) डाल देती है जिससे उसका असर लगभग ख़त्म हो जाता है.इसके बाद एक और हथियार हैं जिसे “मिर्ची बम” कहते हैं. इसे लोगों पर फेंकने पर त्वचा और आंखों में जलन होने लगती है. लेकिन यह भीड़ की संख्या और उन्माद की तेजी को देखते हुए असरदार नहीं रहा है क्योंकि इसका असर भीड़ में मौजूद कुछ लोगों तक ही सीमित रहता है और सैकड़ों लोगों की भीड़ पर काबू पाना मुश्किल हो जाता है.अब ऐसे माहौल में जब भीड़ का उन्माद अपने चरम पर हो तो ऐसे में सुरक्षा बलों के पास कुछ तो ऐसा हथियार होना चाहिए जो कि उनकी जान की रक्षा कर सके.पैलेट गन के प्रयोग को दुनियाभर में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बिना खतरे वाला आसान जरिया माना जाता है. यह एक नॉन लीथल हथियार है यानी गैर-जानलेवा हथियार है. पैलेट गन शिकार और पेस्ट कंट्रोल के लिए भी काफी लोकप्रिय हैं.
पैलेट गन क्या होती है?
पैलेट गन पंप करने वाली बंदूक है जिसमें कई तरह के कारतूस इस्तेमाल होते हैं. कारतूस 4 से 12 के रेंज में होते हैं, 4 को सबसे तेज़ और ख़तरनाक माना जाता है. इसके एक बार फायर होने से सैकड़ों छर्रे निकलते हैं जो रबर और प्लास्टिक के होते बने होते जिनमें लेड का इस्तेमाल भी किया जाता है.पैलेट गन पंप करने वाली बंदूक है जिसमें कई तरह के कारतूस इस्तेमाल होते हैं. कारतूस 4 से 12 के रेंज में होते हैं, 4 को सबसे तेज़ और ख़तरनाक माना जाता है. इसके एक बार फायर होने से सैकड़ों छर्रे निकलते हैं जो रबर और प्लास्टिक के होते बने होते जिनमें लेड का इस्तेमाल भी किया जाता है.इतना ही नहीं टारगेट की तरफ फायर करने के बाद छर्रे सभी दिशाओं में बिखरते हैं जिसके कारण पास से गुज़रते या दूर खड़े उस व्यक्ति को भी अपनी चपेट में ले लेता है जो कि विरोध प्रदर्शनों में शामिल नहीं होता है. सुरक्षाबलों के मुताबिक जरूरत पड़ने पर सिर्फ कमर के नीचे ही प्रदर्शनकारियों पर इस फायर किया जाता है लेकिन छर्रे इधर उधर फ़ैल जाते हैं.पैलेट गन का निर्माण पश्चिम बंगाल स्थित इशपुर राइफल फैक्ट्री में होता है. जम्मू कश्मीर पुलिस और सीआरपीएफ ने पहली बार अगस्त 2010 में इसका प्रयोग किया था.
पैलेट गन का इस्तेमाल
कश्मीर में तैनात सेना के अधिकारी बताते हैं कि 2010 में 4 और 5 पैलेट टाइप का प्रयोग होता था लेकिन कश्मीर में वर्ष 2010 में करीब 110 लोगों की मौत होने के कारण 8 और 9 टाइप को प्रयोग करने का फैसला किया गया. वे बताते है कि सैनिक जम्मू %26 कश्मीर के लोगों को अपने देश का नागरिक ही मानते हैं वे उन लोगों पर हथियार नहीं चलाना चाहते हैं लेकिन जब भीड़ इनके ऊपर ग्रेनेड और पत्थर फेंक रही होती है हो हमारे पास अपनी सुरक्षा करना भी जरूरी हो जाता है. वे कहते हैं कि पैलेट गन का इस्तेमाल सुरक्षाबल अंतिम हथियार के तौर पर ही करते हैंजम्मू और कश्मीर सरकार के आंकड़ों के अनुसार अकेले वर्ष 2018 में ही कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं में 41 सुरक्षाकर्मी मारे जा चुके हैं जबकि जबकि 907 से ज्यादा घायल हो चुके हैं. अगर पिछले 3 साल के आंकड़ों की बात करें तो पत्थरबाजी में 11,566 सुरक्षाकर्मी घायल हुए हैं.
सारांश के तौर पर यह कहा जा सकता है कि कश्मीर का मुद्दा सुलझाना भारत के लिए बहुत ही जरूरी होता जा रहा है. भारत सरकार को कश्मीर के सभी दलों के नेताओं के साथ मीटिंग करनी चाहिए और उन्हें यह समझाने का प्रयास करना चाहिए कि उनके सभी हित तभी सुरक्षित हैं जब तक उनके ऊपर भारत सरकार का हाथ हैं. अगर एक पल को यह मान भी लिया जाए कि भारत सरकार ने उसके ऊपर से हाथ हटा लिया है तो फिर पाकिस्तान उसके साथ वैसा ही सलूक दुबारा करेगा जैसा कि उसने 1947 में हमला करके किया था.